anbindhe moti

नदी की धारा-सी तुम आयी
मेरा मानस मरुथल भूखा, सूखा, सिहर समायी

नत भू-भंग तरंग, तीर युग बाहु-लता अलसाई
फूट रही चल मलयांचल से, तनु की स्वस्थ गुराई
अघर-तटी पर स्मिति-रेखा-सी बालारूण की झाँई
नयन डहडहे, मृग-शावक ज्यों साथ बहाकर लायी
नव शैवाल-जाल कच कोमल, घन की-सी परछाई
कंपित वक्ष, सलिल-सा फेनिल, थाह न मिलने पायी
नदी की धारा-सी तुम आयी
मेरा मानस मरुथल भूखा, सूखा, सिहर समायी समायी

1945