anbindhe moti

प्रेम यह वरदान या अभिशाप जीवन का ?

मान-यश जग के भवन में
घोर हाहाकार मन में
कवि बना जो, पुण्य था या पाप जीवन का ?

विश्व को कर ज्योति वितरित
दीप-सा मैं जल रहा नित
प्राण का यह तेज है या ताप जीवन का ?

यह हृदय की करुण भाषा
गीत की मेरी निराशा
है समय की छाप या ध्रुव माप जीवन का ?
प्रेम यह वरदान या अभिशाप जीवन का

1942