anbindhe moti

भर दिये तन-मन सौ रंगों से
रंगों के जादूगर ! तुमने अपने भ्रू-भंगों से

मंद-मंद हँस ग्रीवा मोड़ी
कानों तक अरुणाभा दौड़ी
भू-धनु खींच, तडित-सी छोड़ी
नयन-निषंगों से

वयः:-संधि के मृदु परिचय के
अभिनय थे संकेत प्रणय के
अधर-कली पर उड़े हृदय के
चुंबन भूंगों-से

लुटी कामनाओं की झोली
भायी जो मन की, सब हो ली
मलय सुगंध चुराती डोली
कुसुमित अंगों से

भर दिये तन-मन सौं रंगों से
रंगों के जादूगर ! तुमने अपने भ्रू-भंगों से

1942