anbindhe moti

भड़भूजे

शंख ही बजाया किये भारती के मंदिर में
कोमल पद-कमल रमा के नहीं पूजे हैं
भाव बिना भाव, रहे अर्थ बिना अर्थ के ही
और मेरे गीत गूँजकर भी अनगूजे हैं
सूजे हाथ-पाँव वास्तविकता देख सिकता-सी
हंस तो सदा ही मानसर के बीच कूजे हैं
फॉँक-फाँक भूजे, कोरे कागजों से जुझे हम
रसमय खरबूजे चाभ रहे भड़भूजे हैं