anbindhe moti
मुझ तक आये कौन ?
मेरा तो साथी निशि-दिन का मौन, अकेला, मौन
गोरी मृदुल-हथेली किसकी मस्तक को सहला दे !
रोते भग्न हृदय को थपकी देकर कौन सुला दे !
मैं तो नखत नील अंबर का, कभी एक से दो न
क्या मैं ही अनजान दिशा में चलता, प्रिये ! अकेला
याद न करती होगी तुम भी निशि की पिछली वेला !
जैसे मैं जल रहा यहाँ पर, तुम भी जलती हो न !
साथ यही अब, मेरी स्मृति में पौधा एक लगाना
छठे-छमाहे, प्राण ! वहाँ तुम सुध लेने आ जाना
पाटल एक हाथ में लेकर कहना, ‘तनिक हँसों न!
मुझ तक आये कौन ?
मेरा तो साथी निशि-दिन का मौन, अकेला, मौन
1948