anbindhe moti

युगधर्म

आम कटहल है या पपीता है
नाप का एक वही फीता है

बढ़ी हुई शाखों को छाँट दो
आवारा फुनगी को डाँट दो
कद हुआ लंबा तो काट दो
भागवत यही, यही गीता है

बाँकपन इतना नहीं चाहिए
लपझप-सा सभी कहीं चाहिए
ऐंठ जहाँ नमन वहीं चाहिए
आदमी हारा हुआ जीता है

दिन गये कमल के, गुलाब के
बड़े नखरे थे इन जनाब के
‘केसरजी बढ़िए दुम दाब के
बैल ठंडाई नहीं पीता है

आम कटहल है या पपीता है
नाप का एक वही फीता है