anbindhe moti

मैंने माँगा प्यार, तुम्हारी पलकें सजल बनीं

चमक उठी दो आँखें काली,
चल कपोल पर दौडी लाली
ग्रीवा ने मुड़ हँसी छिपाली
मैं बोला स्वीकार ? तुम्हारी भौहें तनिक तर्नीं

नीरवता ने ली अँगडाई
साँस सदृश भूली स्मृति आई
भाग छिपी तुम सिहर, लजायी
मैं रह गया पुकार, हृदय में पीड़ा लिये घनी

होड्‌ लगी जीवन-यौवन की
आँखमिचौनी विरह-मिलन की
देख विकलता तुमने मन की
बना विजय को हार, पिन्हा दी भुज-लतिका अपनी
मैंने माँगा प्यार, तुम्हारी पलकें सजल बनीं

1945