anbindhe moti

स्मृति

खीचने जब लगता मैं चित्र
तुम्हारी स्मृति में हो आसक्त
जागती मधुर प्रेम की पीर
न जो शब्दों में होती व्यक्त

हुआ विस्मृत वह मोहक रूप
स्वप्न की छाया-सा सुकुमार
गूँजती पर मन में अविराम
रूप की वीणा की झंकार

आज वह एक सरस अनुभूति
मधुर अस्पष्ट प्रेम का गीत
हृदय में ले कर उसकी याद
रहा सपने-सा जीवन बीत

प्राण में एक पुलक अज्ञात
देह में अलसाया मधु परस
उसीका अनुभव कर दिन-रात
बना रहता है जीवन सरस

हृदय का यह थरथर आवेग
हृदय का यह उन्माद अशक्त
न पायी जिसे कल्पना आँक
शब्द कर देगे कैसे व्यक्त

1939