anbindhe moti
इतने आसमान के तारे
लोग इन्हें गिन-गिनकर अपनी
देते काट विरह की रजनी
कैसे भला बिताते होंगे ये वियोग की घड़ी, बिचारे !
हममें कुछ हँसते कुछ रोते
समझाते जब धीरज खोते
किंतु दुखों की ज्वाला में ये जलते हैं सारे-के-सारे
माना विरही मनुज सभी हम
मिल ही जाते कहीं, कभी हम
पर संयोग न होता इनका, कभी सृष्टि-नियमों के मारे
इतने आसमान के तारे
1939