bikhare phool

नहीं है नया हमारा प्यार
पहले से ही बसी हुई थी तारों में झंकार

जड़ पाषाण-खंड के भीतर
छिपी हुई थी प्रतिमा सुन्दर
मैंने बस निज कर से छूकर

किया उसे साकार

शब्दों की चादर के नीचे
सोयी थी कविता दृग मींचे
मैंने बस मुँह से पट खींचे

कुंतल दिए सँवार

प्राणों के अविदित परिचय में
घुमड़ रहा था प्रेम हृदय में
मैंने बस बाँधा सुर-लय में

नयन हुए जब चार

नहीं है नया हमारा प्यार
पहले ही से बसी हुई थी तारों में झंकार