bikhare phool

कैसे मोल करूँ उस क्षण का
जब उस अश्रु-सजल चितवन ने, भेद कह दिया मन का!

पाँव भले ही ठहर न पाये
गयी विवश तुम नयन झुकाये
पर न भूलता कभी भूलाये

सुख वह मधुर मिलन का

जिसको गाते नहीं थका मैं
अपने तक ही रख न सका मैं
कैसे मोल करूँ उसका मैं

धन है जो जीवन का!

जहाँ जुड़े हम कभी घड़ी भर
ठहर गया है काल वहाँ पर
छल जाता है अब भी आकर

स्वप्न वही यौवन का

कैसे मोल करूँ उस क्षण का
जब उस अश्रु-सजल चितवन ने, भेद कह दिया मन का!

1995