chandni

ज्योत्स्ने, ओ हुलासभरी!

जलधि नील दुकूल
रहीं कच में झूल
तारिकायें पत्तियाँ लघु, मेघ सित वन-फूल
नव मधु के विलासभरी

नभ अमृत – निर्झरी
चढ़ मयंक – तरी
चली किरण-कुमारियों संग प्रेम की नगरी
पुलकित मलय-हासभरी

मौन मधु उर में
गीत नूपुर में
दूर सुन पड़ती निशीथ-विहाग के सुर में
वंसी-ध्वनि मिठासभरी
ज्योत्से, ओ हुलासभरी!

1941