diya jag ko tujhse jo paya

आत्माओ, महान कवियों की
क्या अब भी सुनती हो जयध्वनि सुरपुर में तुम निज कृतियों की?

तुमने जड़ शब्दों के द्वारा
जो चेतन संसार सँवारा
क्या अब भी लगता वह प्यारा

जिसमें निखिल आयु थी झोंकी?

या तुम अन्य लोक में जाकर
भूली जो भी रचा यहाँ पर?
छूती है न तुम्हें अब तिल भर

निंदा-स्तुति जग के लोगों की?

लिखने में ही सब सुख आया
तो क्या, यदि तब मान न पाया!
पर यदि प्रिय थी यश की माया

प्यास बुझ सकी अब प्राणों की?

आत्माओ, महान कवियों की
क्या अब भी सुनती हो जयध्वनि सुरपुर में तुम निज कृतियों की?