diya jag ko tujhse jo paya

नाथ! तुम जिसको अपना लेते
पहले तपा आग में उसको फिर कंचन कर देते

पत्नी के न वचन चुभ जाते
क्या तुलसी तुलसी बन पाते!
धोखा यदि न प्रेम में खाते

योग भरथरी सेते!

मोहमुक्त करने को अंतर
तुम भक्तों को देते ठोकर
वही कृपा की है जब मुझपर

क्यों मन मूढ़ न चेते!

जिसका मन तुममें रम जाता
वह हित-हानि न चित में लाता
वर दो, पहुँचूँ तुम तक, दाता!

मैं भी नौका खेते

नाथ! तुम जिसको अपना लेते
पहले तपा आग में उसको फिर कंचन कर देते