diya jag ko tujhse jo paya

नाथ ! क्या दोगे यह अवकाश
नयन मूँदने के पहले, देखूँ कि खड़े हो पास ?

युद्ध-भूमि में पा  शोकान्वित
वचन कहे जो अर्जुन के हित
सुन-सुन उनकी प्रतिध्वनि, दृढ़चित

मिटा सकूँगा त्रास ?

जीवन के दिन जाते भागे
अब जो अंतिम रण है आगे
उसमें लड़ लूँगा भय त्यागे

दोगे वह विश्वास ?

सबने छोड़ दिया हो पथ में
उस कठोर यात्रा के अथ में
हे चिर-सारथि ! बैठे रथ में

धरे रहोगे रास ?

नाथ ! क्या दोगे यह अवकाश
नयन मूँदने के पहले, देखूँ कि खड़े हो पास ?