ghazal ganga aur uski lahren

1096
पँखुरियाँ गुलाब की नम न हों तो क्या करें !
कुछ उधर भी प्यार के ग़म न हों तो क्या करें !
1097
पढ़ते है ख़त को हाथ में ले-लेके बार-बार
शायद लिखा हो आपने, शायद लिखा न हो
1098
पता नहीं कि उधर बेबसी में क्या गुज़री !
शरीक दिल के गुनाहों में कोई और भी है
1099
पता नहीं कि उन्हें कौन-सी रंगत हो पसंद !
हज़ारों रंग से घर अपना हम जलाया किये
1100
पता नहीं कि कहाँ रात गिरी थी बिजली !
कहीं से कान में आयी थी चीख की आवाज़
1101
पता नहीं कि घड़ी प्यार की कब आयेगी !
अभी तो हमको रुलाने का खेल जारी है
1102
पता नहीं था कि कटकर गयी है मंज़िल से
वो राह हमने जो चुन ली थी नौजवानी में
1103
पत्तों ने ढँक लिया हो तेरा बाँकपन, गुलाब !
आयेगी जब बहार, कभी छिप नहीं सकता
1104
पत्थर को हमने पूजके भगवान कर दिया
कहते हो गुनहगार, गुनहगार तो रहे
1105
परदा नहीं बेबात है यह
कोई तो है परदे में ज़रूर
1106
परदेदारी भी, बेहिजाबी भी
ख़त है सादा तेरा, जवाबी भी
1107
पलकों की ओट में कोई दिल भी है बेक़रार
मुँह पर भले ही बेरुख़ी हमसे दिखाइए
1108
पलटके देखा जो तुमने लजीली आँखों से
लगा कि फिर से मुझे ज़िंदगी पुकार गयी
1109
पलटता कौन है देखें लगाके मन का दाँव
हँसी-हँसी में कभी आँसुओं का खेल तो हो !
1110
पहले तो मेरे दर्द को अपना बनाइए
फिर जो भी सुनाना हो, ख़ुशी से सुनाइए
1111
पहले भी कई बार निगाहें थीं मिल गयीं
हंगामा पर इस बात पर ऐसा तो नहीं था
1112
पहुँच आज किन घाटियों में गया मैं !
यहाँ पर तो हर दोस्ती छूटती है
1113
पहुँच न पायी वहाँ क्यों गुलाब की ख़ुशबू !
हमारा मौन भी गाने से कोई दूर न था
1114
पहुँचते लोग हैं सोये-ही-सोये मंज़िल तक
जगे हुए भी, मगर हम तो दो क़दम न चले
1115
पाँव चितवन के पड़ रहे तिरछे
थोड़ा सीधा तो बाँकपन कर लो
1116
पाँव तो उस गली में धरते हैं
दिल की आवारगी से डरते हैं
1117
पाँव धीरे से रखना हवा
फूल सोये हैं करवट लिये
1118
पाँवों की लकीरें तो मिटा देती है यह राह
राही को मिटा दे, कभी ऐसा नहीं होगा
1119
प्यार ऐसे ही होता कभी
जैसे दीपक से दीपक जले
1120
प्यार औरों से नहीं, हमसे अदावत न सही
है तो शोख़ी ये निगाहों की, शरारत न सही
1121
प्यार कम तो नहीं है उधर भी
देखनेवाले ! तुझमें कमी है
1122
प्यार करने का भी उनका ढंग है अच्छा ‘गुलाब’
ऐसे नाज़ुक फूल को काँटों से बिंधवाने दिया
1123
प्यार करने का उसे हक़ तो सभी का है, मगर
प्यार बदले में करे वह भी, ज़रूरी तो नहीं
1124
प्यार का रंग हज़ारों से अलग होता है
यह इशारा कभी यारों से अलग होता है
1125
प्यार काँटों में ढूँढ़ते है गुलाब
कहाँ जायेंगे इस स्वभाव के साथ !
1126
प्यार किस तरह उनको जतलायें !
दिल को हम चीरकर भी दिखलायें !
1127
प्यार की कोई ख़ुशियाँ मनाता रहा
और आँखों से बरसात होती रही
1128
प्यार की दी है सज़ा हमको, मगर यह तो कहो –
‘क्या नहीं तुम भी हमेशा थे गुनहगार के साथ ! ‘
1129
प्यार की दी है सज़ा हमको मगर यह तो बता-
‘क्या न इन शोख़ गुनाहों की भी मजबूरी थी ?’
1130
प्यार की बात न कर, प्यार को बस रहने दे
दिल में कुछ और तड़पने की हवस रहने दे
1131
प्यार की बात भी भारी है, इसे कुछ न कहो
ज़िंदगी दर्द की मारी है, इसे कुछ न कहो
1132
प्यार की मंज़िल तो है इस बेसुधी से दो क़दम
सैकड़ों कोसों का जिसको फ़ासिला समझे हैं हम
1133
प्यार की याद कभी दिल से भुलायी न गयी
प्यार में दिल कभी हारा भी है, हारा भी नहीं
1134
प्यार की राह में, आँसुओं ने कभी
बात जो थी कही, अनकही हो गयी
1135
प्यार की राह में माना कि मिट गये हैं गुलाब
गंध तो रह गयी उपवन में, जो हुआ सो ठीक
1136
प्यार की राह में रोने से तो बाज़ आयें हम
पर ये मुमकिन नहीं आँखें भी न भर लायें हम
1137
प्यार की शोहरत हुई तो क्या हुआ !
प्यार में मरने का हासिल और है
1138
प्यार की हम तो इशारों से बात करते हैं
फूल जिस तरह बहारों से बात करते हैं
1139
प्यार की हमको ज़रूरत कभी ऐसी तो न थी !
भूलने की उन्हें आदत कभी ऐसी तो न थी !
1140
प्यार की हर सज़ा क़बूल हमें
दिल तेरी बेरुख़ी न सहता है
1141
प्यार के एक मधुर क्षण में जो हुआ सो ठीक
दोष होता नहीं यौवन में, जो हुआ सो ठीक
1142
प्यार को हम न कोई नाम दिया चाहते हैं
बस उन्हें एक नज़र देख लिया चाहते हैं
1143
प्यार तो प्यार ही हैं, दिल ने या आँखों ने कहा
खोज बेकार है, ‘क्या सच है, कहानी क्या है’
1144
प्यार दिल में किया है हमने अगर
कौन दौलत जनाब की ले ली !
1145
प्यार दिल में न अगर था तो बुलाया क्यों था !
हमसे मिलने का ख़याल आपको आया क्यों था !
1146
प्यार दिल में है अगर, प्यार से दो बात भी हो
यों न उमड़ा करें बादल, कभी बरसात भी हो
1147
प्यार धोखा ही सही पर, आपसे
हम ये धोखा भी कभी खाया किये
1148
प्यार ने झट उन्हें पा लिया
साधना हाथ मलती रही
1149
प्यार पर आँच न आ जाय, ठहर, दिल की तड़प
यों न आँखों से लहू बनके बरस, रहने दे
1150
प्यार पर आँच न आये मेरे जाने के बाद
कोई आँसू न बहाये, मेरे जाने के बाद
1151
प्यार मुँह से न कहते बने
प्यार आँखों से जतलाइए
1152
प्यार में और ही आँखों में महकते है गुलाब
चाँदनी रात में फूलों की हँसी और ही है
1153
प्यार में मर भी पाये न हम
याद बातें कई आ गयीं
1154
प्यार में यों भी जीना हुआ
आँखों-आँखों ही पीना हुआ
1155
प्यार यह हमारे ही दिल का हो वहम नहीं !
धड़कनों में आपकी हम न हों तो क्या करें !
1156
प्यार यों तो तो सभी से मिलता है
दिल नहीं हर किसीसे मिलता है
1157
प्यार रोता रहा रात भर
रूप को नींद आती रही
1158
प्यार वहाँ तक जा पहुँचा है
अक्ल जहाँ नाक़ाम हुई है
1159
प्यार सच्चा है तो मंज़िल दूर क्या !
ख़ुद ही पाँवों से लगेगी एक दिन
1160
प्यार हमने किया, उनपे एहसान क्या ! प्यार कहकर जताना नहीं चाहिए
रागिनी एक दिल में जो है गूँजती, उसको होंठों पे लाना नहीं चाहिए
1161
प्यार हमसे जो नहीं है तो ये परदा क्यों है !
कुछ तो दिल में है जो आँखों से झलमला ही गया
1162
प्यार ही प्यार है भरा सब ओर
चेतना को निरावरण कर लो
1163
प्यार हुआ ऐसे तो नहीं
दिल है कहीं, नज़रें हैं कहीं
1164
प्यास होंठों की तो पानी से भी बुझ सकती है
प्यास दिल की जो बुझा दे वो नदी और ही है
1165
पास आते ही निगाहों में खिल उठे हैं गुलाब
फिर कोई अपनी तरफ़ देखता लगा है मुझे
1166
पास रहकर भी नज़र तेरी अजनबी क्यों है !
दिल की धड़कन में भला कौन है हमारे सिवा !
1167
पास रहकर भी रहें दूर उम्र भर के लिये !
यह भी अच्छी है मुलाक़ात ! क़रीब आ जाओ
1168
पास रखते है हरदम गुलाब
कोई काँटों से प्यारा नहीं
1169
प्राण में गुनगुना रहा है कोई
फिर मुझे याद आ रहा है कोई
1170
पियेगा छकके कोई, घूँट भर को तरसेगा
ये नूर पर तेरे चेहरे से यों ही बरसेगा
1171
पिलाने आये वे घूँघट में मुँह छिपाये हुए
सुराही फेर लें, बाज़ आये ऐसे पीने से
1172
पीना है ज़िंदगी में घड़ी-दो-घड़ी का शौक़
पीकर न कोई होश में आये तो क्या करें !
1173
पीने का नहीं हमपे नशा, और ही कुछ है
वह जो तेरी चितवन से ढला, और ही कुछ है
1174
पीने की देर है न पिलाने की देर है
प्याला हमारे हाथ में आने की देर है
1175
पीनेवालों को तो, साक़ी ! तभी पीना आया
जब है प्याले में तेरा अक्स भी झीना आया
1176
प्रीत ने कब किसीकी सुनी !
अपना आँचल भिगोके रही
1177
प्रीत ने पाँव फूँक-फूँक दिये
फिर भी मंज़िल का धोखा खा ही गयी
1178
पूछनी थी जब, न पूछी बात, मुरझाये गुलाब
फूल अब बरसा करें उनपर कि पत्थर, क्या करें!
1179
पूछा उनसे कि आप चुप क्यों हैं
हँसके बोले कि जो कहा, समझें
1180
पूछा उनसे जो किसीने कभी, ‘कैसे हैं गुलाब’
हँसके बोले कि वह बगिया ही छोड़ दी हमने
1181
पूछा उसने कि यह गुलाब है कौन
हम तो इस पूछने पे मरते हैं
1182
पंखड़ी दिल की कोई चूमने आया था, गुलाब !
आप नज़रें न झुकाते तो और क्या करते !
1183
पंखड़ी में तेरी वह रंग न मिलता हो, गुलाब !
पर ये ख़ुशबू न मिटेगी कभी बहार के साथ
1184
पंखड़ी है गुलाब की बेरंग
छूके होंठों से वह ग़ज़ल तो करे
1185
फ़ासिला थोड़ा-सा अच्छा है आपमें, हममें
ख़त्म हो जायगा यह खेल पास आने से
1186
फ़िक्र क्या ! अब तो नज़र आने लगा है उनका घर
बीच में बस मील के दो-चार पत्थर रह गये
1187
फ़िक्र क्या तुझको, कहाँ तक जायगा यह कारवाँ !
बाँध ले बिस्तर, मुसाफ़िर ! तेरा घर आने को है
1188
फ़िज़ा बहार की तुझसे ही सज रही है, गुलाब !
भले ही फूल कई मुँह भी लाल कर लाये
1189
फिर इस दिल के मचलने की कहानी याद आती है
मुझे फिर आज अपनी नौजवानी याद आती है
1190
फिर उतरने लग गयीं यादों की वे परछाइयाँ
दिल का सोया दर्द जैसे फिर उभर आने को है
1191
फिर उन्हीं आँखों की ख़ुशबू में नहाने के लिये
आ गये हम दिल पे फिर एक चोट खाने के लिये
1192
फिर उन्हें हम पुकार बैठे हैं
फिर कोई दाँव हार बैठे हैं
1193
फिर उस तरह से कभी ज़िंदगी सँवर न सकी
किसीने दो घड़ी मन में बसाके छोड़ दिया
1194
फिर एक बार कहो दिल से वहीं लौट चले
सुबह हुई थी जहाँ अब वहीं हो प्यार की शाम
1195
फिर कभी लौटके आयी नहीं ख़ुशबू वैसी
दिल ने सौ बार बहारों में तुझको देख लिया
1196
फिर कहाँ होंगी ये रातें, ये शोख़ियाँ दिल की !
क्या कहेंगे हम उन्हें, फिर जो मुलाक़ात भी हो !
1197
फिर किसीके प्यार ने आवाज़ दी है आपको
देखिए तो झुकके कुछ इन ऊँची मीनारों से आज
1198
फिर किसी प्यार की पुकार है आज
फिर कोई रूप बेक़रार है आज
1199
फिर न आये पलटकर गुलाब
रात करवट बदलती रही
1200
फिर न लौटेंगे कभी इस बाग़ से जाकर गुलाब
देखना है उनको जितना आज जी भर देखिए
1201
फिर न लौटेंगे कभी बाग़ की डालों पे गुलाब
फिर न पाओगे ये सौग़ात, क़रीब आ जाओ
1202
फिर नये ढंग से जूड़े को सजाकर आना
हाथ मेहँदी से रचाये, मेरे जाने के बाद
1203
फिर बहार आयेगी, फिर बाग़ में फूलेंगे गुलाब
जी तो ऐसे ही भर आया है, कोई बात नहीं !
1204
फिर मुझे नर्गिसी आँखों की महक पाने दो
फिर बुलाते हैं छलकते हुए पैमाने दो
1205
फिर याद आ रही है कोई चितवनों की छाँह
फिर दूध की लहर में नहाने चले है हम
1206
फिर से बिछुड़े हुए साथी जहाँ मिल जायँ कभी
दूर इस राह में ऐसा भी कोई होगा मुक़ाम
1207
फिर-फिर वही धुन लेकर यों किसने पुकारा है !
लगता है, उन आँखों में रुकने का इशारा है
1208
फीका-फीका हुआ है बाग़ का रंग
यों तो होने को एक गुलाब भी है
1209
फूँक देना न इसे काठ के अंबार के साथ
साज़ यह हमने बजाया है बड़े प्यार के साथ
1210
फूल अब शाख से झड़ता-सा नज़र आता है
ठाठ पत्तों का उजड़ता-सा नज़र आता है
1211
फूल काँटों के संग अच्छा है
उनको भाये जो रंग, अच्छा है
1212
फूल चुभते थे जिनको, वही
आग पर से चलाये गये
1213
फूलों से लदा था बाग़ जहाँ हम-तुम कल झूमते आये थे
अब राम ही जाने, कब इसकी पत्ती-पत्ती नीलाम हुई
1214
फूलों से हार गूँथके लाना है और बात
काँटों से ज़िंदगी को सजाने में हुनर है