ghazal ganga aur uski lahren

उम्र भर ख़ाक ही छाना किये वीराने की
ली नहीं उसने ख़बर भी कभी दीवाने की

शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक
मेरी आदत थी बुरी, पीके बहक जाने की

दिल में एक हूक-सी उठती है आईने को देख
क्या-से-क्या हो गये गर्दिश से हम ज़माने की

देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार
याद भर रह गयी फूलों के मुस्कुराने की

जिसने भेजा था घड़ी भर तुझे खिलने को, गुलाब!
फ़िक्र क्या, जो वही आवाज़ दे घर आने की !