guliver ki chauthi yatra

नभ पर ऊँचा आसन मेरा
पर कुछ कवियों के तप-सम्मुख झुक जाता इन्द्रासन मेरा

कालिदास की स्मृति धो डालूँ
भक्त बता तुलसी को टालूँ
पर रवींद्र से दृष्टि फिरा लूँ

कैसे यह माने मन मेरा!

पढ़े, सुन, गाये जग इनको
पर कब तक ढोये इस ऋण को!
सुने विविध रूपों में जिनको

नव सुर है, नव गायन मेरा

कितनी भी हो अमल धवलता
यदपि काल ग्रसकर ही टलता
पर मुझ पर कुछ जोर न चलता

है कवित्व नित नूतन मेरा

नभ पर ऊँचा आसन मेरा
पर कुछ कवियों के तप-सम्मुख झुक जाता इन्द्रासन मेरा