guliver ki chauthi yatra

कवित्त

सज्जनों से मिलने-सा सुख नहीं जीवन में
दुःख नहीं दुष्टों से मिलन के समान है
स्थायी है कीर्ति कवि, चिन्तक, वैज्ञानिक की ही
सत्ताधारी दीन पल में भिक्षुक धनवान है
आत्म-विश्वास की कमी है प्रशंसा की भूख
स्रजन-सुख-सम्मुख सुख यश का निष्प्राण है
चेतन मैं, जड़ता का विकास नहीं, शासक हूँ
दास उसका जिसने रचा जग का संविधान है

Jan 2011