har moti me sagar lahre

चिंता निंदकों की नहीं, कहें जो हो कहना
दुखप्रद है रसिक-जनों का विरक्त रहना
अनदेखा करने से तो दोष दिखाना ही भला
निंदा से कठिन है उपेक्षा की पीर सहना