har moti me sagar lahre
जब तक स्वर का लेश रहेगा
तब तक शब्दों में मेरा भी जीवन शेष रहेगा
ज्यों मानस में तुलसी जीवित
गीतों में रवीन्द्र हैं गुंजित
त्यों निज कृति में मेरा भी चित्
चिर सुविशेष रहेगा
कीर्ति-स्तंभ से स्मृति हो पल भर
वह भी बस देखें जब जाकर
झूमे पर मेरी कविता पर
जो जिस देश रहेगा
मेरे गीतों के हर पद का
भाव धरेगा रूप जलद का
चातक-सा ‘प्रसाद-परिषद’ का
फिर परिवेश रहेगा
जब तक स्वर का लेश रहेगा
तब तक शब्दों में मेरा भी जीवन शेष रहेगा
(‘प्रसाद-परिषद’ उस संस्था का नाम है जो ‘प्रसाद’जी
के नाम पर बनारस में बनाई गयी वहाँ के प्रमुख
साहित्यिकों की संस्था थी और जिसमें सन्
१९४० से सन् ’४३ तक सदस्य के रूप में, मैं कविता
पढ़ा करता था.)