har moti me sagar lahre

जिसके बल पर था तुमसे माँगा और पाया भी
रीझा कभी खीझा तुमसे रूठा, तुम्हें गाया भी
डिगने न देना कभी, प्रभु ! वह विशवास मेरा
रहूँ मैं आश्वस्त, सम्मुख तम हो, सघन छाया भी