har moti me sagar lahre

देनी हो मुझको जो भी व्यथा मनचाही, दें
कविता में भले ही नहीं आप वाहवाही दें
‘क्या ही स्मरण-शक्ति, वाह ! क्या ही सुरीला है कंठ,’
विनय यही, ऐसी प्रशंसाएँ न सुनाई दें