har moti me sagar lahre

मिटटी के रथ को लिये मिटटी के ये घोड़े
जिसकी कृपा से फिर रहे हैं दौड़े-दौड़े
फूल तो रहा तू, कभी सोचा भी गत अपनी
सारथि जब इन अश्वों की रास छोड़े !