har moti me sagar lahre

मैंने उलटी कथा कही
क्षार सिंधु-जल ले गंगा नगपति की ओर बही

क्या भगवान भक्त बन जायें ! दूध कि मथे दही !
पर मेरे जीवन में तो कौतुक था घटा यही

यह प्रभुकृपा अहैतुक मैंने कह दी सही-सही
तुम समझोगे इसे स्वयं अनुभव करने पर ही

मैंने उल्टी कथा कही