har moti me sagar lahre

अब न मधुशाला है, न साकी है, न घट, प्याले
उड़ रही धूल जहाँ जुड़ते रहे मतवाले
मैं ही बस यादें उनकी दिल में लिये बैठा हूँ
एक दिन चल दूँगा मैं भी अपनी मधुर स्मृतियाँ ले