har moti me sagar lahre
अब खुला राज कि इन लब्जों का मानी क्या है
पूछो अब हमसे बुढ़ापा क्या है, जवानी क्या है
यह तो बतलाओ कि हम कैसे फिर मिलेंगे यहाँ
तीर पर लौटती लहरों की चिन्हानी क्या है !
सिवा मेरे भगीरथ है कौन, हिन्दी-गजल-गंगा का !
न्याय तो होगा कभी, दूध क्या, पानी क्या है
प्यार तो प्यार ही है, दिल ने या आँखों ने कहा
खोज बेकार है, ‘क्या सच है, कहानी क्या है’
बाग़ है झूम रहा तेरी जिस खुशबू से ‘गुलाब’
बागवाँ ने अगर मानी कि न मानी, क्या है !