har moti me sagar lahre
अब तो मुझे टिकानी ही होगी अपनी यह नाव
शक्ति न, फिरूँ इसे ले तट-तट, अंतिम यही पड़ाव
नौका ने कुल माल उलीचे
झूल रही अब ऊपर-नीचे
कब तक डोर रहूँ मैं खींचे
काँप रहे हैं पाँव !
कर तूफानों की अवहेला
देश-देश फिर चुका अकेला
अब तो बीत चुकी वह वेला
भूल चुका सब दाँव
लहरें क्यों अब मुझे बुलायें !
जिन्हें जहाँ जाना हो. जायें
मैं तो ढूँढूँ दायें-बायें
यहीं कहीं अब ठाँव
अब तो मुझे टिकानी ही होगी अपनी यह नाव
शक्ति न, फिरूँ इसे ले तट-तट, अंतिम यही पड़ाव