jyon ki tyon dhar deeni chadariya
नहीं भी जग तेरी जय बोले
पर क्यों चिंता करे नाम की, तू अधीर यों हो ले!
चित्रगुप्त जब तुझे बुलाये
नाम बड़ा कुछ काम न आये
बस सुकर्म ही वहाँ बचाये
जब वह खाता खोले
जी, जग के यश का हठ त्यागे
यहीं क्षणिक जो, क्या दे आगे!
क्यों निज गौरव भुला, अभागे!
उसके पीछे डोले!
कीर्ति अमर जो काल न खाये
बिरला ही जीते-जी पाये
चपल लोक-रुचि पर मुँह बाये
क्यों तू आपा तोले!
नहीं भी जग तेरी जय बोले
पर क्यों चिंता करे नाम की, तू अधीर यों हो ले!