jyon ki tyon dhar deeni chadariya
मन रे ! क्यों तू सोच करे !
प्रियजन के वियोग की आशंका से सदा डरे
चिर-जीवन पा ले तो क्या वे साथ निभा पायेंगे!
तू न उन्हें छोड़े फिर भी वे तुझे छोड़ जायेंगे
उनका मोह भुलाकर ही तू चिंता से उबरे
कितना भी सोचे पर होनी कभी न टल पायेगी
डरने से ही क्या इस तन को मृत्यु नहीं खायेगी!
क्यों न स्वयं को अमर मानकर तम-सरि में उतरे!
उसकी करुणा पर आस्था रख जो तुझको लाया है
इस जग में तुझसे सुख-दुख का अभिनय करवाया है
डर न, फिरेगा प्रिय पात्रों सँग फिर नव रूप धरे
मन रे ! क्यों तू सोच करे !
प्रियजन के वियोग की आशंका से सदा डरे