jyon ki tyon dhar deeni chadariya

मोह यदि नहीं स्वयँ का छूटे
तो फिर कैसे भक्त तुम्हारा, नाथ! मुक्ति-सुख लूटे

यदपि तुम्हारा लोक जहाँ है
नहीं मरण-भय, शोक वहाँ है
किन्तु करूँ क्या, रोक रहा है –

जो, वह पाश न टूटे!

यदि मेरा मैं ही न रहेगा
किसे मुक्ति का स्वाद मिलेगा!
अनुभव उनका कौन करेगा

हों भी भोग अनूठे!

हो नश्वर द्युति से ही जगमग
लीलाभूमि तुम्हारी है जग
क्यों पूजूँ न उन्हें जो पग-पग

रस के निर्झर फूटे!

मोह यदि नहीं स्वयँ का छूटे
तो फिर कैसे भक्त तुम्हारा, नाथ! मुक्ति-सुख लूटे