jyon ki tyon dhar deeni chadariya
याद कर उस मोहक सपने को
जब शैतान-शिविर में तूने बेच दिया अपने को
उस छलिया ने ही कर माया
तुझको था बल-विभव दिलाया
अब वह तुझे उठा जब लाया
प्राण लगे कँपने क्यों!
बन मोहांध, क्षणिक सुख के हित
उस दिन तो बन गया मदाश्रित
अब क्यों रोये, जब जाता चित्
यमपुर में तपने को!
वही शरण अब जिन्हें भुलाकर
तू बिक गया मधुर वचनों पर
मुक्ति-मंत्र हित फिर दो अक्षर
स्मृति में ला, जपने को
याद कर उस मोहक सपने को
जब शैतान-शिविर में तूने बेच दिया अपने को