jyon ki tyon dhar deeni chadariya

विष की व्यथा भुला दे मन से
सुखी वही है जिसने छोड़ी कुल प्रत्याशायें जीवन से

रो-रोकर यों जीता क्या है!
भरा हुआ क्या, रीता क्या है!
सार समझ जो गीता का है—

‘जीना ऊपर होकर क्षण से’

शत-सहस्र आघातों के व्रण
पग-पग पर नित वृश्चिक-दंशन
सह ले यदि निज से निस्पृह बन

दुख-गिरि-श्रृंग बनें रजकण-से

कितनी भी यन्त्रणा मिले नित
अनासक्त रह अपने में स्थित
पायेगा सुख-शान्ति अपरिमित

वीणापाणि-चरण वंदन से

विष की व्यथा भुला दे मन से
सुखी वही है जिसने छोड़ी कुल प्रत्याशायें जीवन से