jyon ki tyon dhar deeni chadariya

शब्दों की असमर्थता

शब्दों में जब भी पाके तेरी दिव्य झलक
चाहा कि वे पहुँचा दें मुझे भी तुझ तक
ध्वनि आयी कि क्‍यों कर रहा कागज काले!
पाते हैं मुझे वे जो चढ़ाते मस्तक

वृथा न जाल शब्द के सदैव हम बुना किये
छुटे न मोहपाश से, न भक्तिभाव में जिये
रहे सदा अपंख ही विचार आचरण बिना
न हो विराग-वृत्ति तो जलें न ज्ञान के दिये