kuchh aur gulab

एक से एक बढ़कर चले
सब लुटे राह में क़ाफ़ले

प्यार ऐसे ही होता कभी
जैसे दीपक से दीपक जले

एक दिल भी धड़कता रहा
चाँदनी के हिंडोलों तले

कोई आँखें मिलाता नहीं
आ गये हम कहाँ दिन ढले !

तुम अभी तो खिले थे, गुलाब !
रंग दम भर में क्यों उड़ चले !