kuchh aur gulab

नज़र उनसे छिपकर मिलायी गयी है
बचाते हुए चोट खायी गयी है !

उठा फूल कैसा अभी बाग़ से यह
हरेक शाख़ जैसे झुकायी गयी है

ये बाज़ी कोई और ही खेलता है
महज़ चाल हमसे चलायी गयी है

कभी इसका मतलब भी तुम पर खुलेगा
अभी तो हरेक बात आयी-गयी है

गुलाब ! अब उसी बाग़ में लौटना है
जहाँ से ये ख़ुशबू चुराई गयी है