kuchh aur gulab

प्यार यों तो सभी से मिलता है
दिल नहीं हर किसीसे मिलता है

हम सुरों में सजा रहे हैं उसे
दर्द जो ज़िंदगी से मिलता है

यों तो नज़रें चुरा रहा है कोई
प्यार भी बेरुख़ी से मिलता है

क्या हुआ मिल गये अगर हम-तुम !
आदमी, आदमी से मिलता है !

हों पँखुरियाँ गुलाब की ही मगर
रंग उनकी गली से मिलता है