kuchh aur gulab
पीने का नहीं हमपे नशा, और ही कुछ है
वह जो तेरी चितवन से ढला, और ही कुछ है
यों तो है हर नज़र में क़यामत की शोख़ियाँ
दिल में उतर गयी जो अदा, और ही कुछ है
माना कि हम गले से गले मिल रहे हैं आज
यादों में तड़पने का मज़ा और ही कुछ है
हम ख़ुद को उन आँखों में दिखायें भी किस तरह !
हर देखनेवाले ने कहा, ‘और ही कुछ है’
ऐसे तो बाग़ भर में है चर्चा गुलाब की
पर जो तेरी नज़रों में खिला, और ही कुछ है