kuchh aur gulab

फिर उन्हीं आँखों की ख़ुशबू में नहाने के लिये
आ गये हम दिल पे फिर एक चोट खाने के लिये

लो क़सम, मुँह से अगर हमने लगायी हो शराब
यह बहाना था गले तुमको लगाने के लिये

यह तो अच्छा है कि बिस्तर लग गया है बाग़ में
हम कहाँ ये फूल पाते घर सजाने के लिये !

आग जो दिल में फतिंगे के है दीपक में वही
वह है जलने के लिये, यह है जलाने के लिये

ज़िंदगी की हाट में वे रंग बिकते हैं, गुलाब!
जिनको लाया था तू उनका प्यार पाने के लिये