meri urdu ghazalen
हरेक गुंचा हुआ तार-तार गुलशन में
ये किस तरह की है या रब बहार गुलशन में
मैं उन तमाम हदों से गुज़र चुका दिल की
किया था जिनसे गुलों ने सिंगार गुलशन में
जलाये जिसने ज़माने में रंगों-बू के चिराग
उसीके वास्ते काँटों का हार गुलशन में !
तलाश जिसकी है दिल को वही नहीं मिलता
खिला ही करते हैं गुल तो हज़ार गुलशन में
झुकी-झुकी-सी निगाहों से फूटती-सी हँसी
सहमती आती है जैसे बहार गुलशन में
हमारी आँख के आँसू भी रंग लाके रहे
हरेक गुंचा हुआ आबदार गुलशन में
मिले न फूल तो काँटों से भर चले दामन
किसी तरह से दिए दिन गुज़ार गुलशन में
बहार आ भी गयी है तो बस उन्हींके लिए
गुलों के बदले शिगुफ़्ता हैं ख़ार गुलशन में