nahin viram liya hai

तूने मेरी सुध न भुलायी
जब भी मैं हारा तो तेरी बाँह पीठ पर पायी

शंका-अविश्वास के तम में विद्युत-सा कुछ चमका
पल में शांत हुआ दावानल मोह, शोक, भय, भ्रम का

अंतरतम में कोई वंशी-ध्वनि-सी पड़ी सुनायी

व्यक्ति नहीं तू शक्ति-मात्र हो, अनासक्त निज कृति से
मैं गिरता-चढ़ता हूँ अपने कर्मों की ही गति से

किन्तु बता –‘गाढ़े में किसकी करुणा आड़े आयी !’

यदि तू नहीं, सदा है किसकी छवि चेतना-मुकुर में
तू मेरे सँग-सँग है कैसे यह प्रतीति है उर में

‘मैं न मिटूँगा’ क्यों यह आशा मत्ती नहीं मिटायी