nahin viram liya hai

देख नर्तित मयूर-मन मेरा
बोली मेरी छाया हँसकर – ‘गर्व वृथा है तेरा’

‘तुझे टिकाये है जो छविगृह
आप न टिक पायेगा कल वह
कब तक हिम-आतप-वर्षा सह

देगा तुझे बसेरा’

‘जब तू नभ में उड़ जायेगा
क्या यों तान छेड़ पायेगा!
बस अनंत में मँडरायेगा

विफल लगाता फेरा’

‘गूँजे भी तेरी स्वर-मणियाँ
बनी भारती की पैजनियाँ
पहुँचेंगी तुझ तक प्रतिध्वनियाँ

लाँघ शून्य का घेरा?’

देख नर्तित मयूर-मन मेरा
बोली मेरी छाया हँसकर – ‘गर्व वृथा है तेरा’