nahin viram liya hai
नाथ! कैसे अपनाओगे !
लोगे चरण-शरण में या जग में लौटाओगे?
तुमने तो नर-तन दे, भेजा
भूला मैं जो कार्य सहेजा
अब इस अकर्मण्य को ले जा
कहाँ लगाओगे ?
जब भी ध्यान तुम्हारा आया
मन ने यह कहकर भरमाया
लूटो जग-सुख-भोग, न काया
फिर से पाओगे
अब रोये-पछताये क्या फल
लक्ष्य दूर है, दिवस रहा ढल
अब तो एक यही है संबल
तुम न भुलाओगे
नाथ! कैसे अपनाओगे !
लोगे चरण-शरण में या जग में लौटाओगे?