nahin viram liya hai
सँभलना, अब है मेरी बारी
अब तक तो तुमने लोगों की बिगड़ी बहुत सुधारी
क्या यदि, प्रभु! कबीर, तुलसी को तुमने पार उतारा
क्या न उन्होंने पहले ही था तुम पर तन-मन वारा
मैं तो तब जानूँ, मुझपर भी हो जब कृपा तुम्हारी
आड़ तुम्हारी लेकर मैंने अपने को ही गाया
पूजा में भी मन प्रसाद को रहता है अकुलाया
पल भर भी न कभी करता हूँ आगे की तैयारी
पर जो भजते तुम्हें, उन्हीं की यदि तुम सुधि लेते हो
जो श्रद्धा-विश्वास-रहित उन पर न ध्यान देते हो
तो स्वार्थी यदि कहूँ तुम्हें भी, क्या अनर्थ हो भारी!
सँभलना, अब है मेरी बारी
अब तक तो तुमने लोगों की बिगड़ी बहुत सुधारी