ravindranath:Hindi ke darpan me

एकदा तूमि प्रिये

एकदा तूमि, प्रिये ! आमारि ए तरुमूले
बसेछो फूलसाजे से कथा ये गेछे भूले ।।

सेथा ये बहे नदी निरवधि से भोले नि
तारि ये स्रोते आँका बाँका बाँका तव वेणी,
तोमारि पदरेखा आछे लेखा तारि कूले ।
आजि कि सबई फाँकी — से कथा कि गेछे भूले ।।

गेंथेछो ये रागिनी एकाकिनी दिने दिने
आजि उ जाय ब्येपे केंपे केंपे तृणे तृणे ।
गाँथिते ये आँचले छायातले फूलमाला
ताहारि परशन हरसन सुधा-ढाला
फाल्गुन आजो ये रे खूँजे फेरे चाँपाफूले ।
आजि कि सबई फाँकी — से कथा कि गेछे भूले ।।

एकदा तूमि, प्रिये ! आमारि ए तरुमूले
बसेछो फूलसाजे से कथा ये गेछे भूले ।।

 

एक दिन तुम प्रिये

एक दिन तुम प्रिये, अलकों में सजे चंपा-फूल
बैठी थी मेरे तरुतले, वह मिलन क्या गयी भूल !

बहती थी यहाँ जो नदी निरवधि
नहीं क्या तुमको सुधि !
उसीने तुम्हारी आँकी, वेणी बाँकी-बाँकी
तुम्हारी पदरेखा, गति-लेखा,
अब भी है उसके कूल
आज क्या छल है सभी !
वह मिलन क्या गयी भूल !

गायी नित जो रागिनी, एकाकिनी, वन-वन में,
आज भी व्याप रही, काँप रही तृण-तृण में
गूँथी थी आँचल में, बैठी छायातल में जो फूलमाला
तुम्हारा आज भी वह परस, सरस, सुधारस-ढाला
फागुन ढूँढ़ता फिर रहा
चंपई फूलों पर झुक, झूल
आज क्या छल है सभी !
वह मिलन क्या गयी भूल !

एक दिन तुम प्रिये, अलकों में सजे चंपा-फूल
बैठी थी मेरे तरुतले, वह मिलन क्या गयी भूल !