sau gulab khile

हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय
ज़रा सा रुख़ तो मिलाओ कि ज़िंदगी बन जाय

वे और होते हैं जिनसे कि बंदगी बन जाय
मिले जो देवता हमको तो आदमी बन जाय

तुम्हारा प्यार हमारा है, बस हमारा है
कहीं न जान की दुश्मन ये दोस्ती बन जाय

कभी किसीसे जो लग जाय तो छूटे ही नहीं
नज़र का खेल है यह तो कभी-कभी बन जाय

गुलाब इतने हैं दुनिया की चोट खाये हुए
क़लम हवा में छिड़क दें तो शायरी बन जाय