sau gulab khile

उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता !
जहाँ पर ज़िंदगी है, मै वहीं होता तो क्या होता !

बहुत से वक़्त ऐसे भी कटे हैं जबकि घबराकर
ये सोचा मैंने मन में—‘मैं नहीं होता तो क्या होता !’

हुआ है दिल तो घायल बेरुख़ी से ही उन आँखों की
जो थोड़ा प्यार भी उनमें कहीं होता तो क्या होता !

गुलाब ! अच्छे हैं काँटें भी जो सीने से लगाये हैं
सहारा यह भी जीने का नहीं होता तो क्या होता !