sau gulab khile
क्या ज़िंदगी को दीजिए, क्या-क्या न दीजिए !
सामान मौत का ही इसे ला न दीजिए
बातें बना-बना के फिराते हैं मुँह सभी
सच है, भरम किसीको भी अपना न दीजिए
ढाढ़स है, मन का भेद है, आँचल की है हवा
देने की लाख चीज़ें हैं, धोखा न दीजिए
हो जाय बेसुरी मेरी साँसों की बाँसुरी
इस ज़िंदगी को दर्द भी इतना न दीजिए
ढाढ़स नहीं, भरोसा नहीं, प्यार भी नहीं
झूठी अब और जीने की आशा न दीजिए
भाती नहीं जो आपको ग़ज़लें गुलाब की
उन पर न कान देना है अच्छा, न दीजिए