sau gulab khile

कुछ उन्हें मेरा ध्यान हो भी तो !
आये जो दिल में ठान, हो भी तो !

कुछ तो चुप्पी में भी कह जाता हूँ
उनको आँखों में कान हो भी तो !

वे कलेजे से लगा लें बढ़कर
मेरे मरने में जान हो भी तो !

मेरी उम्मीद बचपना छोड़े
उनकी चाहत जवान हो भी तो !

मेरी ग़ज़लों में ढूँढ़ लेना मुझे
नहीं कोई निशान हो भी तो !

रंग तो है नया, गुलाब ! मगर
लोग क्या लेंगे मान, हो भी तो !