sau gulab khile

कुछ हम भी लिख गये हैं तुम्हारी किताब में
गंगा के जल को ढाल न देना शराब में

हमसे तो ज़िंदगी की कहानी न बन सकी
सादे ही रह गये सभी पन्ने किताब में

दुनिया ने था किया कभी छोटा सा एक सवाल
हमने तो ज़िंदगी ही लुटा दी जवाब में

लेते न मुँह जो फेर हमारी तरफ़ से आप
कुछ ख़ूबियाँ भी देखते ख़ानाख़राब में

कुछ बात है कि आपको आया है आज प्यार
देखा नहीं था ज्वार यों मोती के आब में

हमने ग़ज़ल का और भी गौरव बढ़ा दिया
रंगत नयी तरह की जो भर दी गुलाब में